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________________ (५८) जैन जाति महोदय प्र० प्रकरण. दोनों भाषाभों के जो व्याकरण प्रथम प्रस्तुत हुए हैं वे जैनियों ही ने किये थे । . (१२) प्राचीन काल के भारतवर्षीय इतिहास में जैनियों ने अपना नाम अजर अमर रक्खा है ।। . (१३ ) वर्तमान शान्ति के समय व्यापारवृद्धि के कार्योंमें अग्रेसर होकर इन्हों ने ( जैनियों ने ) अपना प्रताप पूर्ण रीति से स्थापित किया है। (१४) हमारे जैन बान्धवो के पूर्वज प्राचीन कालमें ऐसे २ स्मरणीयकृत्य कर चुके हैं तो भी, जैनी कौन हैं, उनके धर्मके मुख्य तत्व कौन कौन से हैं. इसका परिचय बहुत ही कम लोगों को होना बडे आश्चर्य की बात है । (१५ ) " न गच्छे जैन मंदिरम्" * अर्थात् जैनमंदिर में प्रवेश करने मात्र में भी महा पाप है, ऐसा निषेध उस समय कठोरता के साथ पाले जाने से जैन मन्दिर की भीत की आड * कारक भाषा का बहुत बरा व्याकरण श्री महाकलंक देव । रचित रैस साहबने छपा भी दिया है। परन्तु वह सब विलोयत के विषा विलासियों ने मँगा लिया है। इस देश में मिलना अब दुर्लभ है। इसी ट्रेक्ट के नं. १ में महा महोपाध्याय डा० शतीश्चन्द्र एम० ए० पी० एच० डी०, एफ० माई० मार० एस० विद्याभुषण की सम्मति देखें। * न पठेघावनी भाषां प्राणैः कण्ट गतैरपि । हस्तिना पीडय मानीपि न गच्छेजिन मन्दिरम् ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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