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जनेतर विद्वानों की सम्मतिए, (५७) - (९) प्राचीन जैन वाङ्मय संस्कृत वाङ्मय के प्रायः बराबर था । धर्माभ्युदय महाकाव्य, हम्मीर काव्य, पार्श्वभ्युदय काव्य, यशस्तिलक चम्पू आदि काव्य ग्रन्थ, जैनेन्द्र व्याकरण,x काशिका वृत्ति व पजिका, रंभामंजरी नाटिका. प्रमेय कमल मार्तण्ड सरीखे न्याय शास्त्र विषयक प्रन्थ, हेमचन्द्र सरखेि कोष व इनके सिवाय जैन पुराण, धर्मग्रन्य, इतिहास प्रन्य आदि असंख्य शास्त्र
थे । इनमें से बहुत थोडे प्रकाशित हुए हैं और सेंकड़ों अन्य अभी अज्ञात होरहे हैं।
(१०) इन संस्कृत ग्रन्थों के अतिरिक्त अन्य प्रकार से भी जैनियों ने वाङ्मय की बडी भारी सेवा की है।
(११ ) दक्षिण में तामिल व कानडी (कर्णाटकी), इन
जैनियो के परम पूज्य चोवीश तीर्थकर भी सूर्यवंशी चन्द्रवंशी मादि क्षत्री कुल उत्पन्न बडे २ राज्याधिकारी हुए जिसकी साक्षी अनेक जैन इतिहास ग्रन्थों तथा. किसी २ मजैन शास्त्रों व इतिहास मन्थों स भी मिलती है । ___शाकटायन व्याकरण जिस का मत कई स्थानो में पाणिनिय व्याकरण ने भी ग्रहण किया है जैनाचार्य कृत ही है। तवा और भी अनेक जैन बाकरण है।
नाटक, काम्य, साहित्य, कोष, न्याय, छन्द, व्याकरण, गणित, वैषक, ज्योतिष, आदि अनेक विषयों के जैन अन्य अब भी अनेक विषमान हैं । इसी ट्रेक्टके पूर्व भाग में +०१ में महा महोपाध्याय रा. शतीचन्द्र, विद्याभूषण तथा माननीय महा महोपाध्याय पं० राममित्र शात्री का भी सम्मतियां देखें।