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(५२) जैन जाति महोदय प्र• प्रकरण.
__ (३) हिन्दूशास्त्रों और जैनशास्त्रोंका भी इस विषय में एक मत है । भागवतके पांचवें स्कन्ध के अध्याय २-६ में ऋषभदेव का कथन है जिसका भावार्थ यह है:
चौदह मनुभों में से पहले मनु स्वयंभू के प्रपौत्र नामिका पुत्र ऋषभदेव हुआ जो इस कालकी अपेक्षा जैन सम्प्रदाय का भादि प्रचारक था । इनके जन्मकाल में जगतकी बाल्यावस्था थी, इत्यादि ।
भागवतके अध्याय ६ श्लोक :-११ में लिखा है कि "को. कबेंक और कुटक का राजा अर्हत् ऋषभ के चरित्र श्रवण करके कलयुग में ब्राह्मण विरोधी एक नवीन धर्म के प्रचार का मानस करेगा किन्तु हमने अन्य किसी भी प्रन्थ में ऐसे किसी राजा का नाम नहीं पाया । अर्हत् को अन्य कोई भी ग्रन्थकार कोंकबेंक और कुटक का राजा नहीं कहता ।
महत् का अर्थ ( भई धातु से ) प्रशंसाई तथा पूज्य है। शिव पुराण में अर्हत् शब्दका व्यवहार हुआ है किन्तु महत् नाम से कोई राजाका नाम नहीं है, ऋषभ ही को महत् कहते है । महत राजा कलियुग में जैनधर्म का प्रचारक होता तो वाचस्पत्य (कोषकार) ने ऋषभको जिनदेव वा शब्दार्थ चिंतामणिने उन्हे प्रादि जिनदेव कभी नहीं कहा होता । किसी किसी उपनिषद में भी ऋषभ को महत् कहा है।
भागवत् के रचयिताने क्यों यह बात कही सो कहा नहीं जा सका।