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जैनेत्तर विद्वानों की सम्मतिए. (५१) (१२) प्राचीन काल में महात्मा ऋषभदेव "अहिंसा परमो धर्मः " यह शिक्षा देते थे ! उनकी शिक्षाने देव मनुष्य और इतर प्राणियों के अनेक उपकार साधन किये हैं । उस समय ३६३ पुरुष पाखंड धर्म प्रचारक भी थे। चार्वाक के नेता 'बृहस्पति " उन्हीं में से एक थे । मेक्समूलर आदि यूरोपीय पण्डितों की भी यही धारणा है जो उनके सन् १८९९ के लेखसे प्रकट है जिसे ७६ वर्ष की उमर में उन्होंने लिखा है।
(१३) अतएव प्राचीन भारत में नाना धर्म और नाना दर्शन प्रचलित थे इसमें कोई संदेह नहीं है ।
. (१४) जैनधर्म हिन्दूधर्म से सर्वथा स्वतंत्र है । उसकी शाखा वा रूपान्तर नहीं है। विशेषतः प्राचीन भारत में किसी धर्मान्तर से कुछ ग्रहण करके एक नूतन धर्म प्रचार करनेकी प्रथा ही नहीं थी। मेक्समूलर का भी यही मत है । . (१५) लोगों का यह भ्रमपूर्ण विश्वास है कि पार्श्वनाथ जैनधर्म के स्थापक थे । किन्तु इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेवने किया था, इसकी पुष्टि के प्रमाणोंका अभाव नहीं है । यथाः
(१) बौद्ध लोग महावीर को निर्ग्रन्थ अर्थात् जैनियोंका नायक मात्र कहते हैं स्थापक नहीं कहते ।
(२) जर्मन डाक्टर जैकोबी भी इसी मत के समर्थक हैं। .
* इनके निर्वाण को आजसे २७०५ वर्ष होचुके । यह जैनियों के तेईसवें तीर्थकर थे जो चोवीसवें अन्तिम तीर्थकर महावीर स्वामी से २५० वर्ष पूर्व हुए।
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