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________________ जनेतर विद्वानों की सम्मतिए. (४९ । और महाभाष्य प्रणेता पतञ्जलि के कई सौ वर्ष पहिले पाणिनिने जन्म ग्रहण किया था । अतएव अब निश्चय है कि शाकटयन का उणादि सूत्र अत्यन्त प्राचीन ग्रंथ है । (७) बौद्धशास्त्रमें जैनधर्म निग्रंथोंका धर्म वतलाया है । और यही निर्ग्रन्थ धर्म बौद्ध धर्मके बहुत पहिले प्रचलित था। (८) डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र योगसूत्रकी प्रस्तावना में कहते हैं कि सामवेद में एक बलिदानविरोधी यति ( जैन मुनिका ) उल्लेख है । उसका समस्त ऐश्वर्य भृगुको दान कर दिया गया था, क्यों कि ऐतरेय ब्राह्मण के मतमें बलिदान विरोधी यतिको शृगालके सन्मुख प्रतिप्त करना चाहिये । मगध वा कीटमें यज्ञदानादिका विरोधी एक सम्प्रदाय था, ( देखो भृग्वेद अष्टक ३, अध्याय ३, वर्ग २१ ऋचा १४, तथा ऋग्वेद, मं० ८, अ० १०, सूक्त ८६, ऋचा ३, ४ तथा भृग्वेद मं० २, अ० २, सू० १२, ऋचा ५; ऋग्वेद प्रष्टक ६, अध्याय, ४, वर्ग ३२, ऋचा १०, इत्यादि)। (९) सांख्य दर्शन सूत्र ६-"अविशेषश्चोभयोः" अर्थात् दुःख और यंत्रणा दूर करनेवाले दृश्यमान और वैदिक उपायों में कोई भेद नहीं है । क्योंकि वैदिक बलिदान एक निष्ठूर प्रथामात्र है। यज्ञ में पशु हनन करने से कर्मबन्ध होता है, पुरुष को तज्जन्य लाभ कुछ नहीं होता। .. ." मा हिंस्यात्सर्वभूतानि ।" " अग्निषामीयं पशुमालमेत् ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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