________________
( ४६ )
जैनजातिमहोदय प्र० प्रकरण.
करो उनके भावों को प्यार की निगाह से देखो, यह धर्म कर्म की झलकती हुई चमकती दमकती मूर्ते है........उनका दिल विशाल था, वह एक वेपायांकनार समन्दर था जिसमें मनुष्य प्रेमकी लहरें जोर शोर से उठती रहती थीं और सिर्फ मनुष्य ही क्यों उन्होंने संसार के प्राणी मात्र की भलाई के लिये संव का त्याग किया, जानदारो का खून बहाना रोकने के लिये अपनी ज़िन्दगी का खून कर दिया । यह श्रहिंसा की परम ज्योतिवाली मूर्तियां है । वेदों की श्रुति " - हिंसापरमो धर्म:” कुछ इन्हीं पवित्र महान् पुरुषों के जीवन में श्रा मीली सूरत इख्तियार करती हुई नज़र आती है ।
ये दुनियां के जवरजस्त रिफार्मर; जबरदस्त उपकारी और बड़े ऊंचे दर्जे के उपदेशक और प्रचारक हो गुजरे है । यह हमारी कोमी तवारीख ( इतिहास ) के क़ीमती ( बहुमूल्य ) रत्न हैं । तुम कहां और किनमें धर्मात्मा प्राणियों की खोज करते हो इन्हीं को देखो, इनसे बेहतर (उत्तम) साहवेकमाल तुम को और कहां मिलेंगे । इनमें त्याग था, इनमें वैराग्य था, इनमें धर्म का कमाल था, यह इन्सानी कमजोगियों से बहुत ही ऊँचे थे । इनका खिताब “जिन" है, जिन्होंने मोहमाया को और मन और काया को जीत लिया था, यह तीर्थकर हैं, इनमें बनावट नहीं थी, दिखावट नहीं थी, जो बात थी साफ साफ थी । ये वह लासानी ( अनौपम ) शखसीयतें होगुजरी हैं जिनको जिसमानी कमजोरियों, व ऐवोंके छिपाने के लिये किसी जाहरी पोशाक की ज़रुरत लाहक नहीं हुई । क्योंकि उन्होंने तप