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जैनेतर विद्वानों की सम्मतिए.
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सुप्रसिद्ध श्रीयुत महात्मा शिवव्रतलालजी वर्म्मन, एम० ए०, सम्पादक 'साधु ' ' सरस्वती भण्डार, ' ' तत्वदर्शी, ' 'मार्तण्ड, ' लक्ष्मी भण्डार, '' सन्त सन्देश, ' आदि उर्दू तथा नागरी मासिकपत्र, रचयिता 'विचार कल्पद्रुप, ' ' विवेक कल्पद्रुम, ''वेदान्त कल्पद्रुम,' कल्याण धर्म, "कबीरजी का बीजक " आदि ग्रन्थ, तथा अनुवादक "विष्णुपुराण," इत्यादि. ( ४ )
इस महात्मा महानुभावद्वारा सम्पादित ' साधु ' नामकउर्दू मासिकपत्र के जनवरीं सन् १९११ के श्रम में प्रकाशित 'महावीर स्वामी का पवित्र जीवन ' नामक लेख से उद्धृत कुछ वाक्य, जो न केवल श्री महावीर स्वामी के लिये किन्तु ऐसे सर्व जैन तीर्थंकरों, • जैन मुनियों तथा जैन महात्माओं के सम्बन्ध में कहे गए हैं:(१) गए दोनों जहान नज़र से गुज़र तेरे हुस्न का कोई बशर न मिला ।
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(२) यह जैनियों के प्राचार्य्यगुरू थे । प्राकदिल, पाक ख्याल मुजस्सम पाकी व पाकीज़गी थे । हम इनके नाम पर इनके काम पर और इनको बेनज़ीर नफ्सकुशी व रियाज़त की मिसाल पर, जिस कदर नाज़ ( अभिमान ) करें वजा ( योग्य ) है ।
(३) हिन्दु ! अपने इन बुजुर्गों की इज्जत करना सीखो .. तुम इनके गुणों को देखो, उनकी पवित्र सूरतों का दर्शन