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________________ (४४) जैन जाति महोदय प्र• प्रकरण, (६) ब्राह्मणधर्म और जैनधर्म दोनोंमें झगड़े की जड हिंसा. थी जो अब नष्ट होगई है । और इस रीति से ब्राह्मण धर्म को जैनधर्म ही ने अहिंसाधर्म सिखाया। (७) ब्राह्मणधर्म पर जो जैनधर्मने अक्षुण्ण छाप मारी है उसका यश जैनधर्म के ही योग्य है । अहिंसा का सिद्धान्त जैनधर्म में प्रारम्भ से है और इस तत्व को सनझने की त्रुटि के कारण बौद्ध धर्म अपने अनुयायी चीनियों के रूप में सर्वभक्षी होगया, है। " (८) ब्राह्मण भोर हिन्दुधर्म में मांस भक्षण और मदिरा पान बन्द होगया, यह भी जैनधर्म का ही प्रताप है। (९) महावीर स्वामी का उपदेश किया हुआ धर्मतत्व सर्वमान्य होगया। (१०) पूर्वकाल में अनेक ब्राह्मण जैनपण्डित जैनधर्म के धुरन्धर विद्वान् होगए है। (११) ब्राह्मणधर्म जैनधर्म से मिलता हुआ है इस कारण ठिक रहा है । बौद्धधर्म का जैनधर्मसे विशेष प्रमिल होने के कारण हिन्दुस्थान से नाम शेष होगया है । ___(१२) जैनधर्म तथा ब्राह्मणधर्म का पीछेसे कितना निकट सम्बन्ध हुआ है सो ज्योतिषशास्त्री भास्कराचार्य के अन्य से विशेष उपलब्ध होता है । उक्त प्राचार्य्यने ज्ञान दर्शन और चारित्र ( जैनशास्त्र विहित रत्नत्रय धर्म ) को धर्म के तत्व वतलाए है।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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