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जैनेतर विद्वानों की सम्मतिए.
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(१) जैनधर्म विशेषकर ब्राह्मणधर्म के साथ प्रत्यन्त निकट सम्बन्ध रखता है । दोनों धर्म प्राचीन हैं ।
(२) ग्रन्थों तथा सामाजिक व्याख्यानों से जाना जाता है। कि जैनधर्म नादि है । यह विषय व निर्विवाद तथा मत भेदरहित है और इस विषय में इतिहास के दृढ़ प्रमाण हैं ।
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(३) इसी प्रकार जैनधर्म में " महावीर स्वामीं का शक ( सम्वत् ) चला है जिसे चलते हुए २४०० बर्ष हो चुके हैं। शक चलाने की कल्पना जैनी भाइयोंने ही उठाई थी ।
(४) गौतमबुद्ध महावीर स्वामी ( जैन तीर्थंकर) का शिष्य था जिससे स्पष्ट जाना जाता है कि बौद्ध धर्मकी स्थापना के प्रथम जैनधर्मका प्रकाश फैल रहा था । चोवीस तीर्थकरों में महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थंकर थे । इससे भी जैनधर्मकी प्राचीनता जानी जाती है । बौद्धधर्म पीछे से हुआ यह बात निश्चित है । बोद्धधर्मके तत्त्व जैन1 धर्म्मके तत्वोंके अनुकरण हैं ।
(५) श्रीमान् महाराज गायकवाड ( बड़ोदा नरेश ) ने पहिले दिन कान्फ्रेंस में जिस प्रकार कहा था उसी प्रकार 'अहिंसा परमोधर्म:' इस उदार सिद्धान्तने ब्राह्मण धर्म पर चिरस्मरणीय छापमारी है । पूर्वकाल में यज्ञ के लिये असंख्य पशुहिंसा होती थी इसके प्रमाण मेघदूतकाव्य आदि अनेक प्रन्थों से मिलते हैं........ . परन्तु . इस घोर हिंसा का ब्राह्मणधर्मसे विदाई ले जानेका श्रेय ( पुण्य ) जैनधर्म ही के हिस्से में हैं ।