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जैनेतर विद्वानों की सम्मतिए.
( ४१ ) इत्यादि गुणों में एक एक गुण ऐसा है कि जहां वह पाया जाय वहां पर बुद्धिमान् पूजा करने लगते है ! तब तो जहां ये ( अर्थात जैनों में ) पूर्वोक्त सब गुण निरतिशय सीम होकर विराजमान है उनकी पूजा न करना अथवा ऐसे गुणपूजकों की पूजा में बाधा डालना क्या इन्सानियत का कार्य है ?
(६) पूरा विश्वास है कि अब आप जानगए होंगे कि वैदिक सिद्धान्तियों के साथ जैनोंके विरोध का मूल केवल प्रज्ञोंकी अज्ञता है. .......... │
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(७) मैं प्रापको कहां तक कहूं, बड़े बड़े नामी प्राचार्योंने अपने ग्रन्थों में जो जैनमतखंडन किया है वह ऐसा किया है जिसे सुन देख कर हंसी आती है ।
(८) मैं आप के सन्मुख श्रागे चलकर स्याद्वाद का रहस्य कहूंगा तब आप अवश्य जान जायंगे कि वह अभेद्य किला है उसके अन्दर वादी प्रतिवादियों के मायामय गोले नहीं प्रवेश कर सकते परन्तु साथही खेद के साथ कहा जाता हैं कि अब जैनमत का बुढ़ापा आगया है । अब इसमें इने गिने साधु गृहस्थ विद्वान् रहगए हैं...
(९) सज्जनों! एक दिन वह था कि जैनसम्प्रदाय के आचार्यों के हुंकार से दसों दिशाएँ गूँज उठती थीं
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(१०) सज्जनों ! जैसे कालचक्रने जैनमत के महत्वको ढांक दिया है वैसे ही उसके महत्वको जाननेवाले लोग भी अब नहीं रहे ।
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(११) रज्जव सांचे सूरको वैरी करे वखान यह किसी