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जैनेतर विद्वानों को सम्मतिए. (३९) कहते है और जिसे गणेश उपाध्याय ने १४ वीं शताब्दि में जारी किया है वह जैन और बौद्धों के इस मध्यपकालीन न्याय की तलछट से उत्पन्न हुई है।
(७) व्याकरण और कोश रचना विभाग में शाकटायन, पद्मनन्दि और हेमचन्द्रादि के ग्रन्थ अपनी उपयोगिता और विदत्तापूर्ण संक्षिप्तता में अद्वितीय हैं ।
(८) छन्दशास्त्र की उन्नति में भी इनका ( जैनियों का ) स्थान बहुत ऊँचा है।
(९) प्राकृतभाषा अपने सम्पूर्ण मधुमय सौन्दर्य को लिये हुये जैनियों की रचनामें ही प्रकट कीगई है।
(१०) ऐतिहासिक संसार में तो जैन साहित्य शायद जगत . के लिये सबसे अधिक काम की वस्तु है । यह इतिहास लेखकों
और पुगवृत्त विशारदों के लिये अनुसन्धान की विपुल सामग्री प्रदान . करने वाला है।
(११) यदि भारत देश संसार भर में अपनी प्राध्यात्मिक और दार्शनिक उन्नति के लिये अद्वितीय है तो इससे किसी को भी इन्कार न होगा कि इस में जैनियों को ब्राह्मणों ओर बौद्धों की अपेक्षा कुछ कम गौरव की प्राप्ति नहीं है ।