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जैनजातिमहोदय प्र० प्रकरण.
है इतना अधिक निर्दोष है कि हिन्दुस्तान को उसका अभिमान होना चाहिये ।
(३) जैन साहित्यने न केवल धार्मिक विभाग में किन्तु दूसरे विभागों में भी आश्चर्यजनक उन्नति प्राप्त की । न्याय और अध्यात्म विद्या के विभाग में इस साहित्यने बडे ही ऊँचे विकाश और क्रम को धारण किया............. 1
(४) न्यायदर्शन जिसे ब्राह्मण ऋषि गौतमने बनाया है अध्यात्म विद्या के रूप में असंभव होजाता यदि जैन और बौद्ध अनुमान चौथी शताब्दिसे न्याय का यथार्थ और सत्याकृति में - ध्ययन न करते |
(५) जिस समय मैं जैनियों के न्यायावतार, परीक्षामुख, न्यायदीपिका श्रादि कुछ न्यायग्रन्थों का सम्पादन और अनुवाद कर रहा था उस समय जैनियों की विचारपद्धति, यथार्थता, सूक्ष्मता, सुनिश्चितता और संक्षिप्तता को देख कर मुझे श्राश्वर्य हुआ था और मैंने धन्यवाद के साथ इस बात का नोट किया है कि किस प्रकार से प्राचीन न्याय पद्धतिने जैन नैयायिकों के द्वारा क्रमशः उन्नति लाभ कर वर्तमान रूप धारण किया हैं ।
(६) जो मध्यमकालीन न्यायदर्शन के नाम से प्रसिद्ध हैं वह सब केवल जैन और बैद्ध नैयायिकोंका कर्तव्य हैं और ब्रह्मणो के न्याय की श्रीधुनिक पद्धति जिसे
नदय न्याय