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________________ जैन धर्मकी प्राचीनता स्वतंत्रता और विशाल भावना के लिये जगत् प्रसिद्ध विद्वानोंकी सम्मतिए श्रीयुत् महामहोपाध्याय डॉक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषण एम० ए०, पी० एच० डी०, एफ० आई० आर० . एस०, सिद्धान्त महोदधि प्रीन्सीपाल संस्कृत ___ कोलिज कलकत्ता. यह महाशय अपने २७ दिसम्बर सन् १९१३ को काशी (बनारस ) नगर में दिये हुये व्याख्यान में नीचे लिखे वाक्य सहर्ष पबनिक के सन्मुख प्रस्तुत करते है: (१) जैन साधु............एक प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करने के द्वारा पूर्ण रीति से व्रत, नियम और इन्द्रिय संयम का पालन करता हुमा जगत् के सन्मुख प्रात्मसंयम का एक बडा ही तम प्रादर्श प्रस्तुत करता है। (२) एक गृहस्थ का जीवन भी जो जैनत्व कों लिये हुए
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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