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________________ (३६) जैन जाति महोदय. वजन १८६० रतलका है महाभारतमे एक इंडा पकनेका काल १००० वर्ष बतलाया है गहुका मस्तक पर्वत जीतना, महाभारतमे छ जोजन लम्बा एकेक हस्ती बतलाया है जब इतने लम्वे शरीग्वाले मनुष्य या पशु थे तो जैनोके भाने हुवे क्रोडाक्रोड सागरोपम पहला ५०० धनुष्यवाले मनुष्य हो इसमे आश्चर्य क्या है जैनोकी दीर्घायुष्य और दीर्घ शरीरकी मान्यता केवल कल्पनारुप ही नहीं है पर यह जैनोकी खास प्राचीनता वतला रही है कि जैनधर्म कीनना प्राचीन है कि जिसकी गणना करना बुद्धि अगम्य है। जैनधर्म के तत्त्वों कि जैनशास्त्रकागेने खुबही विस्तारसे व्याख्या करी है जिन जिन महानुभावों कों जैनधर्म के विषयमे जो कुच्छ शंका हो वह जैनधर्म के सिद्धान्तोंके ज्ञाताओंसे दरियाफ करे या जैनशास्त्रोका अभ्यास करे जैसे जर्मनके विद्वान डाक्टर हरमनजेकोबीने कीया है अगर विगैरह अभ्यास कीये या विगैरह जैनशास्त्रों के ज्ञाताप्रोसे दरियाफ्त कीये। मन कल्पिन कल्पनाए कर जैनधर्मके बागमे कुच्छ भी आक्षेप करेंगे वह स्वामि शंकराचार्य या दयानंद सरस्वतीकी माफीक हासीके पात्र बनेगें. अस्तु कल्याणमस्तु । इति श्री जैन जाति महोदय प्रथम प्रकरण समाप्तम् ।।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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