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________________ - (३५) दीर्घ आयुष्य-शरीर. स्वभाव देहमान आयुष्य बलक्रान्ति संहननादि सवभे क्रमशः हानि पहुँचाता है वह हानी आजभी चालु है जैनोने हो क्या पर अन्य लोगोंने भी पूर्व जमाना के मनुष्योंका-ऋषियोंका हजागें लाखों वर्षों का आयुष्य माना है लाग्यो वर्ष तक तो एकेक ऋषियोने तपश्चर्य करी थी आयुष्य वडा हो जिस्का शरीर बडा होना स्वभावि वान है स्वल्प समय कि जिक्र है कि गमचन्द्र जी के पिताका अायुप्य ६०००० वर्षका था तो जैनोके दीर्घ काल पूर्व वडा अायुष्य और बड़ा शरीर मानना कोन विद्वान अनुचित कह सकेगा फिरभी आज हम प्रत्यक्षमे पूर्व जमानाके जीवोके शरीर पिंञ्जर देखते है तो सेकडो फूटके शरीर दीख पडते है जैसे जैसे प्राचीन काल के ध्वंस विशेष मीलते है वह अधिक उच्चाइवाले मीलते है प्राणि शास्त्र का यह भी एक नियम है कि जीस जीवोंके जीतना बडा शरीर होगा उनका प्रायप्य भी उत्तना ही वडा होगा जैसे हस्ती एक वडा शरीग्वाला जीव है तो उनका आयुष्यभी सब जीवोसे बड़ी है यहही नियम वनस्पनिक जीवोका है जो बड जैसा वृक्ष सब वृत्तोसे बड़ा है नो उतका आयुष्यभी मब में बड़ी होती है वर्तमानकी सोध खोलने यह सिद्ध करवतला दीया है कि पूर्व जमाना के मनुष्य तथा पशु दीर्घ कायावाले थे इ. स. १८५० मे ग्योद काम करते एक मनुष्यका कलेवर मीला है जिसके जडवाका हाड पा जीतना निस्के मस्तक की खोपरी मे २४ ग्नल गाहु मा सक्ता है एकेक दान्त दो दो तोले का है । गुजगती पत्र ता. १२-११-१८६३ का पत्रमे एक मींडक जिस्के दोनो आंखो के अन्तर १८ इचका था खोपरीका बजन ३१२ रतलका और सर्व पीजर का + विशेष प्रमाण विश्वरचना प्रबंध नामकी किताबमें देखो.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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