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जैन जाति महोदय.
वहांतक देशवडाही बलवान समृद्ध और शौर्यके सिक्खपर था देशकी प्रावाधी - उन्नति और देशवासी वडेही सुखशान्तिमे थे इसका कारण जैन मुत्शहियों बडे ही नीतिज्ञ कार्यकुश जता ग्णकुशलता | संधिकुशलता ही था वहस गेके प्रकरणों में बतलाये जायेंगे जैनाचार्योंने केवल हिन्दुराजाओं को ही नहीं पर मुशलमान बादशाको प्रतिबोध दे देशका बहुत कुच्छ भला कीया है । देवं जगत्गुरु आचार्य हिरविजयसूरि और बादशाह अकबर अर्थात् सूरीश्वर और सम्राट् नामका पुस्तक । जबसे राजा लोगोंने जैनधर्मसे कीनाग लीया मुत्शदीयो के हाथों से राजतंत्र छीना गया तबसे ही देशकि क्रमशः हालत वीगडती गड़ जिसका फल आज हमारी आंखो के सामने मोजुद है इत्यादि ।
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इस प्रकरणको पक्षपातदृष्टिसे आद्योपान्त अवलोकन करनेसे पाठकोंकों भलीभांति ज्ञात हो जायगा कि जैनवर्मक विषय में कितनेक अज्ञ लोग भिन्न भिन्न कल्पनाएं करते है वह विलकुल मिश्रया है जैनधर्म इतना प्राचीन है कि जितनी सृष्टि प्राचीन हैं ।
जैन मे वर्तमान अवसर्पिण काल में भगवान् ऋषभदेवसे लेकर अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर हुवे है जिनका संक्षिप्त जीवन दूसरा प्रकरण में वर्णन करेंगे जिनकी दीर्घायुष्य और शरीर के उच्चपन में कीन नेक लोग शंका कर बैठते है की जैनोने मनुष्यों की ५०० धनुष्य की लम्बाई कोडाको वर्ष आयुष्य माना है ? यह शंका बहही कर सकता है कि जिनका विचार विलकुल संकुचित हो पहला यह समज लेना चाहिये कि जैन इस वर्तमानकालको अवसर्पिणी काल मानते है और इस्का