________________
जन राजा.
(३३) ( ७६ ) ग्वालेयरका राना भोजको आ० गोविंदसूरि प्र० ( ७७ ) मानखेट (दक्षिण) का गजा अमोघवर्ष प्रा० दि० जिनसेन प्रति ० " ( ७८ ) कलिंगदेश का राजा धर्मशिलको प्रा० बप्पभट्टसरि प्र० वि.
सं. और विक्रमकी नौवीशताब्दी मे दक्षिणमे अमोघवर्ष राजा गुजगतमे वनगज चावडो मध्यप्रान्तमे श्रामगजा पूर्वमे
धर्मशिलराजा जनधर्म को वडी भारी तरकीदी थी। ( ७६ ) चन्द्रावतीका गजा जैतसी को प्रा० रूपदेवसरि प्र. वि.
सं. १०६५. (८०) पाटनका गजा कुमाग्पालको प्राचार्य हेमचन्द्रसूरि प्रतिबोध
इनके पहला भी पाटन के चावडा सोलंकी गजा जैनधर्म तथा जैनधर्मसे साहानुभुति रखते थे. मूलगजा मुंजगजा
सिद्धगजजयसिंह बहुत प्रसिद्ध गजा हुवे है । (८१) शाकंभरीका प्रथुनगजा को प्रा० धर्मघोषसूरी बि. सं. १२६३
मे प्र० (८२ ) सुवर्णनगरीका गजा समरसिंहको श्रा० अजितदेवसूरीने १३१४ ___इनके सिवाय दक्षिण महाराष्ट्रय मे दिगम्बर जैनोंका वडा भारी
जौर शौर था । और बहुतसे गजा जैनधर्म पालते थे बहुतसे आचार्यने राजाश्रो ओर गजपुत्तोंको जैनी बनाके ओसवाल
श्रादि जातियोंमे मीलाते गये वह गजाओ के दीवान प्रधान .. मित्री सैनापति आदि गजतंत्र चलानेवाले जैन वडेही बुद्धिशाली हुवे जबतक देशका राजतंत्र उन जैनमित्रियों के हस्तगत था