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________________ (३०) जैन जाति महोदय. (२१) पाडलीपुत्रका उड़ाईराजा इत्यादि राजा तथा इनके सिवाय और भी कीतनेही राजा जैनधर्म के परमोपासक थे(४८ ) श्रीभालनगरका जयसेनराजा वीरान् प्रथम शताब्दी प्राचार्यश्री स्वयंप्रभसूरि जो पार्श्वनाथके पांचवे पाट और रत्नप्रभसूरिके गुरू थे जिन्होने प्रतिबोध दे जैनधर्म के परमोपासक बनाया. (४६) पद्मावतीनगरीका राजा पद्मसेन , , (५०) चंद्रावती नगरीका चन्द्रसेनराजा , , (५१) मलकावती नगरीका सलोरराजा ,, , (५२) उपदेशपट्टन ( ओशीयों का ) उत्पलदेवराजा वीरान् ७० वर्ष प्राचार्य रत्नप्रभसूरि प्रतिबोधित जिसके वंसके उपदेशवंस (ोसवाल ) कहलाते हैं और उत्पलदेवकी १४ पीढी जैन राजाभोने राज़ कीया था. (५३) पाटलीपुत्र नगरका चन्द्रगुप्तराजा वीगन् १६० प्राचार्य भद्रबाहु प्रतिबोधित जिसके पुत्र बिन्दुसारभी जैनराजा हुवा और श्राशोक पहला जैनराजा था गजनीकी प्रशस्तीयो व शिलालेखो, मे पार्श्वनाथ व जैनमुनियों कि स्तुतियों है बादमे श्राशोकराजा बौद्धधर्म स्वीकार कीया मालुम होता है. (५४) उज्जैन नगरीका राजा संप्रति वीरात् ३३० वर्ष प्राचार्य सुहस्ती सूरी प्रतिवोधित जिसने सवा लक्ष नया मन्दिर और हजारो मन्दिरो का जीर्णोद्धार कराया म्लेच्छ देशोंमे भी जैनधर्मका प्रचार कीया.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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