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नैन जाति महोदय. वान महावीर के समय जैनोकि संख्या चालीस क्रोडकी थी जिस्का एक ही उधारण--
"भारतमें पहिले ४०००००००० जैन थे, उसी मतसे निकल कर बहुत लोग अन्य धर्म में जानेसेइन की संख्या घट गई, यह धर्म बहुत प्राचीन है, इस मतके नियम बहुन उत्तम हैं, इस मतसे देशको भारी लाभ पहुंचा है।"
(वाबू कृष्णनाथ बनरजी, जैनिज्म ) भगवान महावीर के पश्चात विक्रम कि तेरहवी शताब्दी तक जैनधर्म अच्छी उन्नति पर था मौर्यवंशी कलचूरीवंस बल्लभीवंस कदम्बबंस गष्ट्रकुट वंस पवारवंशी और चोलंक्यवंस के राजा जैनधर्मके उपासक ही नहीं पर जैनधर्म कि बहुत उन्नति भी करी थी जिनकाशिला लेख और ताम्रपत्र प्राजभी इतिहास में उच्चस्थान पा चुके है-यद्यपि जैन राजाओं का सविस्तार विवर्ण अागेके प्रकरण में लिखा जावेंगा तद्यपि यहांपर मिर्फ अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के उपासक तथा उनके बादमे जो गजा जैनधर्म के उपासक हुवे उनकी नामावलि यहांपर दर्ज कर दी जानी है। ( १ ) वैशाला नगरीका चेटक महाराज सकुटुम्ब परम जैनी थे. (२) लच्छवीवंशके नौराजा और मल्लीकवंशके नौराजा एवं १८ देशके
अढारा गणराजा जो चेटकराजाके साधर्मि थे जिनने पावापुरी
नगरी में भगवान महावीर के अन्तिम समय पौषद कीया था । ( ३ ) वीतवयपट्टनका उदाईराजा ( राजर्षि था) और—अभिचराजा
केशीकुमार राजाभी परम जैन थे.