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जैन जाति महोदय. विशेष खोज करने पर यह निश्चित हुवा है कि भागवत बिक्रम कि सोल- . हैवी शताब्दी में मुशलमान राजत्व कालमे वापदेव नाम का पण्डितने बंगाल में भागवत कि रचना करी है और शेष पुरांणो का रचना काल भी विक्रम की पांचली शताब्दी से पूर्वका नहीं है इनसे पूर्व किसी वेद व श्रुतियों में भगवान ऋषभदेव प्र पाठवा अवतार के रूपमे माना हवा दृष्टि गोचर नहीं होता है इससे यह सिद्ध होता है कि भगवान ऋषभदेव जैनियों के आदि तीर्थकर इस अवसर्पिणि कालमे भारतभूमिपर सबसे पहला जैनधर्म का प्रचार कीया शेष धर्म इसी धर्म से निकले हुवे अवचीनि धर्म है ।। ___ जैसे भगवान ऋषभदेव के विषय में पुराणकारोने कल्पित कथाओ लिखी है वैसे ही महात्मा गमचन्द्रजी और श्री कृष्णचंद्र के बारा मे भी लिखी हैं देखिये रामचन्द्रजी का समय · करीबन ५०००० वर्ष पूर्व का बतलाते हैं तब बाल्मीकीय गमायण में लिखा
लख्यो छे. कृष्णभक्तिनो प्रचार ए ग्रंथथी वध्यो ए खमं, परंतु ए इतिहास नथी ए वात ध्यानमा राखवी जोइये.” .
(ऋग्वेदीकृत मार्योना तहेवारोनो इतिदास. पृष्ट ३५०) (२) रामने परमेश्वरना अवतार गणवानो वाल्मीकिनो विचार होय एम लागतुं नथी. पण तुलसीदासे तो तेने साक्षात् विष्णुना अवतार कह्या छे.
(ऋग्वेदी, आर्योना तहेवारोनो इतिहास ८५ ) ३ कीतनेक लोगोंका मन है कि भागवतकी रचना विक्रमकी दशवी शताब्दी मे हुइ है और शेष पुरांणोका समय इसाकी पांचवी सादीका पृष्ठ होता है इससे प्राचीनताका कोइभी प्रमाण अबीतक नहीं मीलता है विशेष देखो आर्यसमाजियो की तरफसे प्रसिद्ध हुवा पुरांण परिक्षा तथा पुरांणोकी पोपलीला और शंकाकोष नामका पुस्तको ।