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________________ भगवान् ऋषभदेव. (२५) कल्की एवं दशावतार माना है इस्मे भी तुंग यह है कि महात्मा बुद्ध वेदान्तियों का कहर शत्रु होने परभी उसको अवतारोमे दाखल कीया है खेर कुच्छ भी हो इस्मे ऋषभदेवका नाम अवतरो में नहीं है जब पुगंण कागेको दश अवतागेसे संतोष नहीं हुवा तब जैनोंमे प्राचीन समयसे २४ तीर्थंकरो कि मान्यता को देख पुगंणकारो कों भी चौवीस अवतारो की कल्पनाए करनी पडी है और चोवीस अवतागे मे भगवान् अपभदेव को आठवा अवतार तरिके मान भागवतादि पुराणों में उन्हों की कथाश्रो लिखि गइ पर साथमें तुरा यह हैं कि जैनि. ये मे भगवान् ऋषभदेव कों आदि पुरुष माना गया देख उसका अनुकरण करते हुवे पुरांणकारोंने भी भगवान ऋषभदेव को आदि पुरुष मान लिया पर यह नहीं सोचा कि आदि पुरुष मान लेने पर पाठवा अवतार कैसे हो सके गा ? कारण अगर एसा ही होगा तों पूर्व हवे सात अवतारों कि श्रादि करनेवाला कौन हुवा. परन्तु कल्पित कथाओ लिखने वालो को पूर्वापर विरोधका ख्याल ही क्यो श्रावे । अब हमे यह देखना है कि पुगंणकारोंने भगवान ऋषभदेव को कवसे अपनाये है इसके विषयमे सबसे पहला उल्लख श्रीमद् भागवत पुराण में मिलता है तब तो हमे भगवत का भी पेत्ता निकालना जरूरी बात है कि भयवत की रचना किस समय मे हुई है श्रीमद्भागवत के विषय में कितनेक विधानोंका तो मत है कि भागवत विक्रम कि दशवी शताब्दी में रची गइ है पर (१) " भागवत ए एक उत्कृष्ठ प्रने रसपूर्ण ग्रन्थ के ए सहु कोइने मान्य छे, पंरतु पापणे धारीये छीये एटलो ते प्राचीन नथी. लगभग ४०० वर्ष पहेलां बंगालामा मुसलमानोना राज्यना वखतमां थइ गयेला 'वोपदेव' नामना विद्वाने ए ग्रंथ
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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