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________________ ( २४ ) जैन जाति महोदय. (१५) महाभारतमे श्री कृष्णचन्द्र क्या कहते है । aisa रथे पार्थ गांडी वंचकदे करू निर्जिता मेदिनी मन्ये निग्रन्था यादि सन्मुखे । अर्थ - युधिष्ठिर । थमें सवार हो और गांडिब धनुष्य हाथमे -- ले में मानता हु कि जिसके सन्मुख निग्रन्थ ( जैनमुनिं ) श्राया हो उसने पृथ्वी जीतली । क्या इस लोकसे जैनधर्म कि प्राचीनता सिद्ध नही होती है । ( तव निर्णयप्रसाद ) उपरोक्त वेद श्रुतियो व स्मृतियों और पुराणो के प्रमाणो से यह भलिभांति सिद्ध हो गया कि वेदकाल के पूर्व जैनधर्म अच्छी उन्नति पर था. और पुराणो में जो भगवान् ऋषभदेव कीं कथा लिखी है वह • जैनियों के शास्त्रों से लेकर ही लिखी है और भगवान् ऋषभ - देव का संबंध भी जैनियोंके साथ ही है नकी वेदान्तियोंसे कारण पुराणकाराने भगवान ऋषभदेवको सृष्टिका आदि पुरुष मानते हुवे भी आठवा अवतार लिखा है यह दोनो वाक्य परस्पर विरूद्ध है श्रागे चलकर हमे यह भी पता मीलता है कि वेदों में चौवीस अवतारों का नाम निशांन तक भी नहीं है वाइमे पुरांणकारोने छोटे वडे दशावतार मानके उनका उल्लेख अपने पुरांणों मे कर के कीतनेक स्थानों पर दशावतार के मन्दिर भी बनाया दशावतार के बारा मे मत्स्य कूर्मो वराहश्च नरसिंहो थ वामनः रामो रामश्च कृष्ण च, बुद्ध कल्की चेतदशः ॥ १ ॥ मच्छा कच्छा सुयर नरसिंह वामन राम परशुराम कृष्ण बुद्ध और
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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