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________________ पुराणों के प्रमाण. (२३) कुण्डसना जगद्धात्री बुद्धगाता जिनेश्वरी जिनमाता जिनेन्द्रा च शारदा हंस वाहिनी । अर्थ-भवानी के नाम ऐसे वर्णन कीये है जिस्से जिनेश्वरी जिनदेव की माता जिनेन्द्रा कहा है। (१४) मनुस्मृति कुलादि बीजं सर्वेषां प्रथमो विमल वाहनः । चक्षुष्मांश्च यशस्वी वाभिचन्द्रोथ प्रसनेजित् ॥ मरूदेवि च नाभिश्च भरतेः कुल सत्तमः । अष्टमो मरूदेव्यां तु नाभेजतिउरुक्रमः ॥ 'दर्शयन वत्मवीराणं सुरासर नमस्कृतः । ___ नीति त्रितयकर्ता यो युगादौ प्रथमोजिनः ।। अर्थ-सर्व कुलो का आदि कारण पहला विमलवाहन नाम और चक्षुष्मान ऐसे नामवाला यशस्वी अभिचन्द्र और प्रसन्नजित मरूदेवी और नाभि नामवाला कुलमें वीरो के मार्ग को दिखलाता हुवा देवता और दैत्यों से नमस्कार को पानेवाला और युग के आदि में तीन प्रका. रकी नीति के रचनेवाला पहला जिन भगवान् हुए। भावार्थ-यहां विमलवाहनादिको मनु कहा है जैनसिद्धान्तोमे इने कुलकर कहा है और महायुग के आदिमें जो अवतार हुवा है उस्को जिन अर्थात् जैन देवता लिखा है ईससे भी विदित होता है कि जिनधर्म युग कि आदिमे भी विद्यमान ही था उक्त लेखसे भी ज्ञात हो जायगा कि सब धर्मोमे जैनधर्म प्राचीन हैं ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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