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पुराणों के प्रमाण. . (२१) करते है जो तीन प्रकार कि नीति के बनानेवाले है वह युग कि आदि मे प्रथम जिन अर्थान् श्रादिनाथ भगवान् हुये सर्वज्ञ ( सब लौकालौकके भावो को जानने वाले ) सर्व को देखने वाले सर्व देवो कर पूजनिय, छत्र त्रीयकर पूज्य मोक्षमार्गका व्याख्यान करते हुए मयको आदि लेकर सर्व देवता सदा हाथ जोडकर भाव सहित जिसके चरणकमलो का ध्यान करते हुए एसे ऋपभ जिनेश्वर निर्मल कैलास ( अष्टापद) पर्वत पर अवतार धारण करते हुवे जो सर्व व्यापि ओर कारूणावान है । भावार्थ जिन व जिनेश्वर जैनोमे तीर्थकरोकों कहेते है जिनभाषित धर्म को ही जैन धर्म कहते है ईस श्लोको से भी जैन धर्म कि प्राचीनता साबित होती है। (९) शिवपुराण
अष्ट पष्टिषु तीर्थषु यात्रायां यत्फलं भवेत्
आदि नाथस्य देवस्य स्मरणेनापि तद्भवेत् । अर्थ अडसठ (६८) तीर्थो कि यात्रा करनेका जो फल है उतना फलश्री आदिनाथ के स्मरण करने ही से होता हैं यह आदिनाथ वह ही है जो जैनियों के आदि तीर्थकर हुए । ( १० ) योग वासिष्ट प्रथम वैराग्य प्रकरण, राम कहे ते है
नाहं रामो नमे वाच्छा भावेषु च न मे मनः
शान्ति मास्थातु मिच्छामि चात्मन्येव जिनोयथा। अर्थ-महात्मा गमचन्द्रजी कहते है कि न में राम हुँ न मेरी