SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन जाति महोदय. थुगे युगे महापुण्यं दृश्य ते द्वारिकापुरी अवतीर्णो हरिर्यत्र प्रभास शशि भूषणः । रेवताद्रौजिनो नेमि युगादिर्विमला चले ऋषीणामाश्रमा देव मुक्ति मार्गस्य कारणम् ॥ १ ॥ अर्थ-युग युगमे द्वारिकापुरी महाक्षेत्र हैं जिसमे हरिका हुवा जो प्रभास क्षेत्रमे चन्द्रमा की तरह शोभित है और गिरनार पर्वतपर नेमिनाथ और कैलास (अष्टापद ) पर्वत पर आदिनाथ अर्थात ऋषभदेव हुवा है यह क्षेत्र ऋषियों के श्राश्रम होने से मुक्ति मार्ग के कारण है । ( २० ) नोट - महा भारत के समय पूर्व भी जैन धर्म कि मान्यता मोजुद थी. जैनों का अष्टापद व गिरनार तीर्थ भी मोजूद था । (८) श्री. नाग पुरांण - दर्शयन् वर्त्म वीराणं सुरासुर नमस्कृतः । नीति त्रयस्य कर्ता यो युग्गदौ प्रथमो जिनः ॥ सर्वज्ञ सर्वदर्शी च सर्व देव नमस्कृतः । छत्र त्रयीभिरा पूज्यो मुक्ति मार्गम सौ बदन || आदित्य प्रमुखाः सर्वे बद्धांजलि भिरीशितुः । ध्यायांति भवतो नित्यं यदं धि युग नीरजम् ॥ कैलास मिले रम्ये ऋषभोयं जिनेश्वरः । चकार स्वावतारं यो सर्वः सर्वगतः शिवः ॥ अर्थ- वीरपुरुषो को मार्ग दिखाते हुये सुरासुर जिनको नमस्कार
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy