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जैन जाति महोदय. के व पुराणों के एसे प्रमाण यहां दे देना चाहिये कि जैन धर्म वेद धर्म से निकला मोनने वालो का भम्र मूलसे । नष्ट हो जाय ।
(१) यर्जुवेद-ॐ नमोऽर्हन्तो ऋषभो ॥ अर्थ अर्हन्त नामवाले (व) पूज्य ऋषभदेव को नमस्कार हो। ,
(२) यर्जुवेद-ॐ रक्ष रक्ष अरिष्ट नेमि स्वाहा ॥ अर्थ-हे अरिष्ट नेमि भगवान् हमारी रक्षा करो (अध्य० २६)
(३) ऋग्वेद-ॐ त्रैलोक्य प्रतिष्टितानां, चतुर्विशति तीर्थ कराणां । ऋषभादि वर्तमानान्तानां, सिद्धानां शरणं प्रपये ॥ अर्थ तीन लोक मे प्रतिष्टित श्री ऋषभदेवसे श्रादि लेकर श्री वर्द्धमान स्वामि तक चौवीस तीर्थकरो (तीर्थ की स्थापना करनेवाले ) है उन सिद्धांकी शरण प्राप्त होता हुँ ।
(४) ऋग्वेद-ॐ पवित्रं नग्नमुपवि (ई ) प्रसानहे येषां नग्ना (नग्नये) जातिर्येषां वीरा ॥ अर्थ हम लोग पवित्र, " पापसे बचानेवाले " नग्न देवताओं को प्रसन्न करते है जो नग्न रहते हैं और बलवान हैं.
(५) ॐ नग्नं सुधीरं दिग् वाससं ब्रह्मगर्भ सनातनं उपैमि वीरं पुरुष मर्हतमादित्यवर्ण तमसः पुरस्तात् स्वाहा ।। अर्थ नग्न धीर वीर दिगम्बर ब्रह्मरूप सनातन अर्हन्त आदित्यवर्ण पुरुष की शरण प्राप्त होता हुं।
(६) श्री ब्रह्माण्ड पुराण ।