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जैन जाति महोदय. ( २७ ) पाश्चात्य विद्वात् रेवरेन्ड जे० स्टीवेन्स साहेब लिखते है कि:
साफ प्रगट है कि भारतवर्षका अधःपतन जैनधर्मके अहिंसा सिद्धान्त के कारण नहीं हुआ था, बल्कि जब तक भारत वर्षमें जैन धर्मकी प्रधानता रही थी, तब तक उसका इतिहास सुवर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है । और भारतवर्षके हासका मुख्य कारण आपसी प्रतिस्पर्धामय अनैक्यता है । जिसकी नींध शङ्कगचार्यके जमानेसे जमा दी गई थी।
जैन मित्र वर्ष २४ अङ्क ४० से. ( २८) पाश्चात्य विद्वान् मि० ' सर विलियम' और हैमिल्टन ने मध्यस्थ विचारोंके मंदिरका अाधार जैनोंके इस अपेक्षावादका को ही माना है । जैनमत में अपेक्षावादका ही दूसरा नाम नयवाद है । __ (२६) डाक्टर टामसने जे. एच. नेलसन्स " साइन्टिफिक स्टडी
ऑफ हिन्दु ला.” नामक ग्रन्थमें लिखा है कि यह कहना काफी होगा कि जब कभी जैन धर्मका इतिहास बनकर तय्यार होगा तो हिन्दू कानूनके विद्यार्थी लिये उसकी रचना बडी महत्वकी होगी, क्योंकी वह निःसंशय यह सिद्धकर देगा की जैनी हिन्दु नहीं है।
(३०) इम्पीरियल ग्रेज़ीटियर ऑफ इंडिया न्हाल्यूम दो पृष्ट ५४ पर लिखा है कि कोई २ इतिहासकार तो यह भी मानते हैं कि गोतम बुद्ध को महावीर स्वामी से ही ज्ञान प्राप्त हुआ था जो कुछ भी हो यह तो निर्विवाद स्वीकार ही है कि गोतम बुद्धने महावीर