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________________ ( १४ ) जैन जाति महोदय. (२२) इन्डियन रिव्यु अक्टोबर सन् १९२० ई० के में मद्रास प्रेसीडेन्सी कालेजके फिलोसोफीना प्रोफेसर भि० ए० चक्रवर्ती एम. ए. एल. टी. ए. लिखित " जैन फिलोसोफी " नामके आर्टिकलका गुजगती अनुवाद महावीर पत्रके पौष शुक्ला १ संवत २४४८ संवत् में छपा है उसमेंसे कुछ वाक्य उधृत । रिप्रभदेवजी ' आदि जिन ' आदीश्वर' भगवानना ना पण खाय के ऋग्वेदनां सूकनोमां तेमनो 'र्हत' तरीके उल्लेख थपलो. छे जैनो तेमने प्रथम तीर्थकर माने छे. बीजा तीर्थकरो बधा क्षत्रियोज हता. : (२३) भारत मत दर्पण नामकी पुस्तक राजेन्द्रनाथ पंडित उर्फ रायप्रपन्नाचार्य्यने समाजी प्रेस वडोदा में छपा कर प्रकाशित की है उसके पृष्ठ १० की पंक्ती ६ से १४ में लिखा है कि पूज्यपाद बाबू कृष्णनाथ बेनरजी अपने ' जिन जन्म ( जेनिजम ) में लिखा है कि भारत में पहिले ४०००००००० जैन थे उसी मतसे निकल कर बहुत लोग दूसरे धर्ममें जानेसे इनकी संख्या घट गई, यह धर्म बहुत प्राचीन हैं इस मत के नियम बहुत उत्तम है इस मनसे देशको भाग लाभ पहुंचा है । 27 ऑफ पाली, वरोडा कालेजका एक जैन साहित्य संशोधक पुना भाग वाक्य उध्धृत । (२४) श्रीयुत् सी. बी. गजवाडे एम. ए. बी. एस. सी. प्रोफेसर लेख " जैन धर्मनुं अध्ययन अंक १ में छपा है उसमेंसे कुछ
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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