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________________ ( १२ ) जैन जाति महोदय. ( १५ ) " जिनकी सभ्यता आधुनिक है वे जो चाहे सो कहे परंतु मुझे तो इसमें किसी प्रकारका उम्र नहीं है कि जैनदर्शन वेदान्नादि दर्शनोंसे भी पूर्वका हैं । तब ही तो भगवान् वेदव्यास महर्षि ब्रह्मसूत्रों में कहते है — नैकस्मिन्संभवान् । सज्जनो ! जब वेदव्यास के ब्रह्मसूत्र - प्रणयन के समय पर जैनमत था तब तो उसके खण्डनार्थ उद्योग किया गया । यदि वह पूर्वमें नहीं होता तो वह खंडन कैसा और किसका ?, सज्जनो ! समय अल्प है और कहना बहुत है इससे छोड दिया जाता है नहीं तो बात यह है कि वेदोमें अनेकान्तवादका मूल मिलता है । + + + सृष्टिकी दिसे जैनमत प्रचलित है । " ( सर्वतन्त्र स्वतंत्र सत्संप्रदायाचार्य स्वामिगममिश्र शास्त्री . ) (१६) वर्तमान मुस्लीम धर्मकी उत्पत्ति हजरत मुहम्मद साहब पैगंबर हुई मानी जाती है. मुसलमानोंका अरबी, फारसी, उर्दु विग्ह भाषाका साहित्य मुहम्मद साहबके वक्तका अथवा इनके पीछले का है, मुहम्मद साहको हुए पूरे १४०० वर्ष अभीतक नही हुए है, इससे यह बात साफ नौग्स सिद्ध है कि मुसलमानी किताबों में सृष्टि आदि पुरुषकी ( बाबाकी ) लो कथा लिखी गई है वह जैनोकं प्रथम तीर्थंकर ऋपभदेव के चरित्र के साथ संबंध रखती है, क्योंकि जैनशास्त्रोंमें उनको प्रथमतीर्थकर, च्यादिनाथ, च्यादिप्रभु, आदिमपुरुष, युगादिम वगैरह अनेक नामोंसे उल्लिखित किया है, 4 शब्द 'आदिम' शब्दका हूबहू रूपान्तर है, शब्द आदि तीर्थकरके अर्थ में दो हजार वर्ष , आदम जैनोंमें 'आदिम' पहिले से प्रयुक्त हुआ
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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