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ऐतिहासिक प्रमाण.
( ९ ) होवाथी प्रत्येक प्राणी तो शुं पण वनस्पति ने खनिज पण जीवस्वरूप ज छे. एवो तत्त्व छे ते महत्त्वनो छे, प्रा, कारणथी जैनधर्म ए अत्यन्त प्राचीन छे. जैनोना निर्मन्थोनो उल्लेख वेदोमां पण मळे छे तेथी प्रा मारा कथननी प्रतीति थशे. ( जै म ० >
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(८) जैनशास्त्रोंमें प्राणियोंके शरीर और प्रायुष्य संबंधी मान्यता भीति प्राचीन समयकी झलक है, जीवित प्राणियोंका पहिले क्रोडों वर्षो का श्रायुष्य और कोशों बडा शरीर होना जैनशास्त्रों में लिखा है, यह सिद्धान्त ति पुराने वक्तका है इसमें तो कोइ शक नहीं है पर यह मान्यता सत्य होनेक बारेमें विद्वानोंको बडी शंका है, इतना ही नहीं बल्के अनेक विद्वानोंके ख्यालसे यह सिद्धान्त केवल अन्धविश्वासमात्र प्रतीत होता है, परंतु ज्यों ज्यों सृष्टिका पुराना इतिहास प्रकाशमें प्राता जायगा त्यों त्यों जैनोंका उपर्युक्त सिद्धान्त सत्य होने की प्रतीति होती भायगी, भूमिके गर्भमें से कोइ १० हजार वर्षके पुराने कलेवर निकले है जिनकी स्थूलता देख कर लोग श्राश्र - र्य डूब जाते है, तो क्रोडों वर्ष पहिलेके प्राणीयोंके शरीर कितने बड़े और उनका श्रायुष्य कितना लंबा होना चाहिये इस बातका विद्वानोंको ख्याल करना चाहिये, अपनी बुद्धि नहीं पहुंचने से ही किसी बातको जूठ कहना ठीक नहीं है. ( जैन धर्म की महत्ता )
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(ह) महाराज ! हिंयां एक निगंठ चारे दिशाना नियमथी . सुरक्षित छे. ( चातुयामसंवरसंवुतो ) हे महाराज, केवी रीते निगंठ चारे दिशाना संवरथी रक्षित छे ? महाराज श्रा निगंठ सघलुं (थंडु)