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जैन जाति महोदय.
ब्राह्मणधर्म पर मारी है. पूर्वकालमें यज्ञ के लिये असंख्य पशुहिंसा होती थी इसके प्रमाण मेघदूत काव्य तथा और भी अनेक ग्रन्थों से मिलते हैं, रतिदेव ( रंतिदेव ) नामक राजाने यज्ञ किया था उसमें इतना प्रचुर पशुवध हुआ था कि नदीका जल खूनसे रक्तवर्ण हो गया था उसी समय से उस नदीका नाम ' चर्मवती ' प्रसिद्ध है. पशुवधसे स्वर्ग मिलता है इस विषय में उक्त कथा साक्षी है, परंतु इस घोर हिंसाका ब्राह्मणधर्म से विदाई ले जानेका श्रेय जैन के हिस्से में हैं । ( ता. ३० - ९ - १९०४ के दिन जैन श्रतास्वर कोन्फरन्सके तीसरे अधिवेशनमें बडौदे में दिये हुए लोकमान्य बालगंगाधर तिलकके भाषण में से ).
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(६) " बुद्धना धर्मे वेदमार्गनो ज इन्कार कर्यो इतो तेने हिसानो श्राग्रह न हतो, ए महादयारूप, प्रेमरूप धर्म तो जैनोनो ज थयो. प्राखा हिन्दुस्थानमाथी पशुयज्ञ निकली गयो छे. x + x ( सिद्धान्तसार में प्रो० मणिलाल ननुभाई )
हिन्दु, ईसाई, मृसल्मान वगैरह ईश्वर, गोड, खुदा ह नामसे एक साधारण और सर्वविलक्षण शक्तिशाली तत्वकी कल्पना करते है और उसे सर्व सृष्टिका कर्ता हर्ता और नियन्ता मानते है ।
हिन्दुस्थान में यह ईश्वरविषयक मान्यता वैदिक युगके अन्त में ( वि० पू० १४५६ के लगभग ) प्रचलित हुई तब यूरोप में दार्शनिक तत्ववेत्ता विद्वान् एनेक्सा गोरसने ( वि० पू० ४४४ - ३५४ ) पहल पहिले ईश्वरका स्थापन किया । इससे यह बात तो निश्चित है