SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४ ) जैन जाति महोदय. उधर भगवान् पार्श्वनाथ के पूर्वगामी तीर्थंकर नेमिनाथ को ऐतिहासिक पुरुष सिद्ध कर दिया है जो कि श्रीकृष्णचन्द्र और अर्जुनके समकालिन हुवे थे. उनका समय जैन शास्त्रों में लिखा मुताबिक पार्श्वनाथसे ८४००० वर्ष पहलेका माना जाता है श्रागेके लिये जैसे जैसे ऐतिहासिक शोधखोल होती जायगी वैसे ही जैन धर्मकि प्राची - नता प्रागे बढती जायगी. वहां तक कि भगवान् ऋषभदेव जो जैनोंके प्रादि तीर्थकर माना जाता है वहां तक पहुँच जानी चाहिये । वर्तमान ऐतिहासिक विद्वानोंने जैन धर्मकी प्राचीनताके विषय में जो उल्लेख किये हैं उनसे कुच्छ उद्धारण यहां दर्ज कर दीये जाते हैं । (१) " पार्श्व ए ऐतिहासिक पुरुष हता ते वात तो बधी ते संभवित लागे छे. केशी के जे महावीरना समयमां पार्श्वना संप्रदायनो एक नेता होय तेम देखाय छे. ( हरमन जेकोबी ). (२) " सबसे पहिले इस भारतवर्ष में ऋषभदेव नामके महर्षि उत्पन्न हुए, वे दयावान् भद्रपरिणामी, पहिले तीर्थकर हुए, जिन्होंने मिथ्यात्व अवस्थाको देखकर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग् चारित्ररुपी मोक्षशास्त्रका उपदेश किया. बस यह ही जिनदर्शन इस कल्पमें हुआ. इसके पश्चात् अजितनाथसे लेकर महावीर तक तेईस तीर्थकर अपने अपने समय में अज्ञानी जीवोंका मोह अंधकार नाश करते रहे. ( श्रीयुक्त तुकाराम शर्मा लट्टु बी. ए. पी. एच्. डी एम. आर. ए. एस. एम. ए. एस. बी. एम. जी. प्रो. एस. प्रोफेसर क्विन्स कॉलेज बनारस. 19
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy