________________
(२)
जैन जाति महोदय. धर्म सर्व धर्मसे प्राचीन और स्वतंत्र धर्म है। जिसके प्रबल प्रमाण हम आगे चलके इसी प्रकरणमें देंगे.
आज ऐतिहासिक युग के अन्दर ज्ञानका बहुत कुच्छ प्रकाश हो चुका और होता जा रहा है तो भी वर्तमान समय में अज्ञ लोगों कि भी संख्या कम नहीं है । कितनेक तो बिल्कुल अज्ञानता के अन्धकार में ही पडे हुवे है, कितनेक परम्परा व रूढिके गुलाम बन बैठे है, कितनेक द्वेष-बुद्धि के उपासक बन यहांतक कहने में भी संकोच नहीं करते है कि जैन धर्म वैदिक धर्मसे निकला हुवा नूतन धर्म है कितनेही जैन धर्मको बोद्ध धर्मकी शाखा बतलाते है तो कितनेक बौद्ध धर्म को जैन धर्मकी शाखा कहते हैं । कितने ही कहते है कि जैन धर्म भगवान् महावीग्से प्रचलित हुवा तो कितनेक जैन धर्मके उत्पादक भगवान् पार्श्वनाथको ही बतलाते है कितनेक तो यहां तक कह बैठते है कि गोरखनाथ मच्छेन्द्रनाथके शिष्योंने ही जैन धर्म चलाया है इत्यादि मनमानी कल्पनाएं घड लेते हैं इससे जैन धर्मको तो कुच्छ भी हानि नहीं है पर ऐसे अज्ञ भव्यों को सत्य सिद्धान्तका अवलोकन करवा देना हम हमाग परम कर्त्तव्य समजके ही यह परिश्रम प्रारंभ कीया है.
एक यह वात भी खास जरुरी है कि जिस धर्मके विषयमें जो कुच्छ लिखना चाहे तो पहिले उस धर्मका साहित्य अवश्य अवलोकन करना चाहिए फिर उसपर टीका टीप्पणी करनेमें लेखक स्वतंत्र है. आज हम देखते हैं तो एसे लेखक हमें विस्तृत संख्यामें मीलेंगे