________________
समुद्रसूरि हुए हैं- ये सब महात्मा, जिनके स्मरण से हमारा हृदय अपने अतीत गौरव को जानकर फूल उठता है, मेरे हृदयगृह के निविड़ अन्धकार रूपी पट को सूर्यवत् दूर करें ।
आचार्योऽदत्तकेशी - श्रमण इति शुभं नामभृद्भूपतिभ्यां बोधं बौधांश्वजित्वाश्वकुरुतविजयी यः स्वधर्म प्रचारम् । श्रीमालं समजयोऽकुरुत च नृपतिं यः स्वयं कान्ति सूरि जैनं पद्मावतीशं स्वहृदयकमले तद्गुरुप्रार्थयेऽहम् || ३ ||
केशी श्रमणाचार्य जिन्होंने अनेक राजाओं को प्रतिबोध दिया और बौधमतवालों को पराजित कर स्वधर्म की विजय पताका फहराई तथा स्वयंप्रभकांतिसूरि जिन्होंने श्रीमालनगर और पद्मावती नगरी के राजा को प्रजा सहित जैनी बनाया इन दोनों महापुरुषों को मैं गौरव के साथ अपने हृदयकमल में वास करने की प्रार्थना करता हूँ । ३ ।
सूरीरत्न प्रभावस्तिलकइवकुलेऽभूत्तुविद्याधराख्ये जैनायेनोपकेशे नगर उपल देवादयः कारिताश्च । लेभेयस्यप्रसादात्क्षितिपति तनयश्चेतनं मूर्च्छितोऽपि स्वर्ग तस्मै गताय क्षितिभृति यतिने लक्षकृत्वो नमोऽस्तु ||४||
विद्याधर वंश के तिलक प्रातःस्मरणीय श्री रत्नप्रभसूरि जिन्होंने उपकेश नगर में उपलदेव आदि को जैनी बनाया तथा अपने पूर्व चमत्कार से मुर्छित कुमार को जागृत किया और जिन्होंने परम पावन क्षेत्र सिद्धगिरि पर अनसन करते हुए देह