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________________ ( ५२ ) जैन जातिमहोदय. ख्यान में श्री भगवतीजी सूत्र सुनाते थे । जिसका महोत्सव वरI घोड़ा पूजा बड़े ही समारोह से हुआ | आपके व्याख्यान में श्रोताओं की सदा भीड़ लगी रहती थी । आपके उपदेशके फलस्वरूप यहाँ 1 तीन महत्वपूर्ण कार्यारम्भ हुए। एक तो श्री वीर मण्डल की स्थापना हुई तथा श्रावकोंने उत्साहित होकर बड़े परिश्रम से समवरणकी दिव्य रचना करवाई । इस अवसर पर श्रठाई महोत्सव तथा शान्तिस्नात्र पूजा का कार्य देखते ही बनता था । तीसरा कार्य भी कम महत्वका नहीं था । आपके उपदेश से मन्दिरजी के ऊपर शिखर बनवाने का कार्य श्रावकों से प्रारम्भ करवाया गया था । इस चातुर्मास में श्री संघकी ओर से करीबन रु. १७००० ) शुभ कार्यों में व्यय किये गये थे 1 निम्न लिखित पुस्तकें भी प्रकाशित हुई १००० शीघ्रबोध भाग ६ दूसरी वार । १००० १००० १००० 19 ܘ ܘ ܘ ܐ . 99 ܕܙ ८ ह 99 " ,, १० 29 ५००० कुल पाँच सहस्र प्रतिएँ । एक ही जिल्दमें "1 99 " 99 " 1 आपने एक निबन्ध लिख कर लोढा उमरावमलजी द्वारा फलोधी पार्श्वनाथ स्वामी के मेले पर एकत्रित हुए श्री संघ के पास भेजा । जिसका तत्काल प्रभाव पड़ा । उसी लेख के फलस्वरूप
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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