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लेखक का परिचय.
(४९) दोहा-जयवन्ता जिन शासने, विचरो गुरु उजमाल । देश पधारो हमतणे, कर जोड़ी कहे कुशाल ॥
" तीन चतुर्मास के दिग्दर्शनसे” । विक्रम संवत् १९८० का चतुर्मास (लोहावट)
आपश्री का सत्रहवाँ चतुर्मास इस वर्ष लोहावट ग्राम में हुआ । व्याख्यान में आप उसी रोचकता से भगवतीजी सूत्र फरमाते थे। श्रोताओं को भाप का व्याख्यान बहुत कर्णप्रिय लगता था । सूत्रजी की पूजा अर्थात् ज्ञानखाते में १८॥ मुहर तथा ५५०) रुपये रोकड़े सब मिलाकर १०००) रुपये से पूजा हुई थी। वरघोड़ा बडे ही समारोह से चढाया गया था। इसमें फलोधी के लोगोंने भी अच्छा भाग लिया था.
आपने इस चतुर्मास में दो संस्थाएँ स्थापित की । एक तो जैन नवयुवक मित्र मण्डल तथा दूसरी श्री सुखसागर ज्ञान प्रचारक सभा । वर्तमान युग सभा का युग है। जिस जाति या समाज के व्यक्तियों का संगठन नहीं है वे संसार की उन्नति की सरपट दौड़ में सदा से पीछी रही हैं। अतएव जैन समाज में ऐसी भनेक संस्थाओं की नितान्त आवश्यक्ता है जिनमें युवक और बालक प्रथित होकर समाज सुधार के पुनीत कार्य में कमर कस कर लग्गा लगा दें।
आप साथ ही साथ श्रावकों को धार्मिक ज्ञान भी सिखाया करते थे। पाप के सदुपदेश से, भहे ढंग से होनेवाले हास्यास्पद