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________________ (४८) जैन जाति महोदय, नुकतिपाकादि भोजन विविध प्रकारी । पुन्य पवित्र जीमे नर अरु नारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ २७ ॥ संघ चतुर्विध मिलके खीचंद जावे । पूजाका वर्षे रंग गवैया गावे । प्रभु यात्रा करतो आनन्द अधिको भावे । । शासन उन्नति प्रभावना दे पावे । स्वामिवात्सल्य जीमे सदा सुखकारी ॥ श्री ज्ञान०॥ २८ ॥ . धर्म उत्साही वीर पुरुष कहवावे । __ जो उठावे काम विजय वह पावे । जैनधर्मका डंका जोर सवाया । विघ्नसं तेषी देख देख शरमाया । जयवन्त सदा जिन शासन है जयकारी ।। श्री ज्ञान॥२९॥ कृपा करके तीन चौमासा कीना। ज्ञान ध्यानका लाभ बहुत जन लीना । . गुणी जनोंका गुण भव्य जन गावे | शुभ भावोंसे गोत्र तीर्थकर पावे । । ___बनि रहै शुभ दृष्टि सुनो उपकारी। श्री ज्ञान ० ॥ ३० ॥ संवत् उगणीसे गुणियासी सुखकारी । कातिक शुद पंचमी बुधवार है भारी। कवि कुशल इम जोड़ लावणी गावे । फलोधीमें सुन श्रोता सब हरषावे । चरणोंमें वन्दना होजो वारम्वारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ ३१॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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