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जैन जाति महोदय, नुकतिपाकादि भोजन विविध प्रकारी ।
पुन्य पवित्र जीमे नर अरु नारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ २७ ॥ संघ चतुर्विध मिलके खीचंद जावे ।
पूजाका वर्षे रंग गवैया गावे । प्रभु यात्रा करतो आनन्द अधिको भावे । । शासन उन्नति प्रभावना दे पावे ।
स्वामिवात्सल्य जीमे सदा सुखकारी ॥ श्री ज्ञान०॥ २८ ॥ . धर्म उत्साही वीर पुरुष कहवावे । __ जो उठावे काम विजय वह पावे । जैनधर्मका डंका जोर सवाया । विघ्नसं तेषी देख देख शरमाया ।
जयवन्त सदा जिन शासन है जयकारी ।। श्री ज्ञान॥२९॥ कृपा करके तीन चौमासा कीना।
ज्ञान ध्यानका लाभ बहुत जन लीना । . गुणी जनोंका गुण भव्य जन गावे |
शुभ भावोंसे गोत्र तीर्थकर पावे । । ___बनि रहै शुभ दृष्टि सुनो उपकारी। श्री ज्ञान ० ॥ ३० ॥ संवत् उगणीसे गुणियासी सुखकारी ।
कातिक शुद पंचमी बुधवार है भारी। कवि कुशल इम जोड़ लावणी गावे । फलोधीमें सुन श्रोता सब हरषावे ।
चरणोंमें वन्दना होजो वारम्वारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ ३१॥