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लेखक का परिचय.
(४७) समकितकी निर्मल ज्योति जगमग लागी। नहीं चले कोका जऔर जाय सब भागी।
नव दिन नव रंगा ठाठ पूजा सुखकारी।। श्री ज्ञान०||२३|| वद दशम को स्वामिवात्सल्य भारी ।
मच्छी बनी है नुकतीपाककी तैयारी । स्वधर्मी मिलके भोजन कर यश लीनो ।
पयूषणों को उत्तर पारणो कीनो। ___बने पर्दूषणोंका उत्सवके अधिकारी ॥ श्री ज्ञान० ॥२४॥ पौषध प्रतिक्रमणसे तप अट्ठाई होवे । - पूर्व ले भवके कर्म मैल सब धोवे । जन्म महोत्सव करके प्रानन्द पाया । ___साढे आठसौ रुपया ज्ञानमें आया । - अब वरघोडैका हाल सुनो चित्तधारी ॥ श्री ज्ञान० ॥२५॥ घुरे नगारा घोर कुमति गई भागी।
निशान ध्वजाकी लहर गगन जा लागी। प्रभुकी असवारी सिरे बजारों भावे । मिल नरनारीका वृन्द भक्ति गुन गावे ।
. पी-पी-ठंडाई मंडली न्यारी न्यारी ॥ श्री ज्ञान ॥२६॥ मिलके प्रतिक्रमण संवत्सरिक ठाया । • लक्ष चौरासी जीवोंको खमवाया । स्वामिवात्सल्य शुदि सातमकी तैयारी ।