SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४६) जेन जाति महोदय. मिलके श्राषक सलाह खूब विचारी । करले महोत्सव समवसरणकी तैयारी । जसवन्त सरायमें सुर मंडप रचवाये । थे हंडा झूमर और झाड़ लटकाये । __शोभा सुन्दर अमरपुरी अनुहारी ।। श्री. ज्ञान० ॥१९॥ तीन गढकी रचना खूब बनाई। जिसके ऊपर था समवसरण दीया ठाइ । चौमुखजी थे महाराज जाऊँ बलिहारी । मूलनायकजी श्री शांतिनाथ सुखकारी । दर्शन कर कर हरषे सहु नर नारी || श्री ज्ञान० ॥२०॥ है बड़ा मास भादवका महीना भारी । __ वद तीजसे हुवा महोत्सव जारी। पेटी तबला अरु ढोलक झंझा बाजे । गवैयोंकी ध्वनि गगनमें गाजे। संघ चतुर्विध है द्रव्य भाव पूजारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ २१ ॥ पूजाका बनिया ठाठ अजब रंग वर्षे । स्व पर मत जन देखी मनमें हर्षे । प्रभु भक्तिसे वे जन्म सफल कर लेवे । उदार चित्तसे प्रभावना नित्य देवे । गाजा बाजा गहगहाट नौबत घुरे न्यारी ॥ श्री ज्ञान०॥२२॥ भष्ट द्रव्यसे थाल भरी भरी लावे | पूजा सामग्री देख मन हुलसावे ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy