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________________ (१८२) जैन जाति महोदव प्रकरण छडा. इस मगवती दिशा का रूप रंग खोर का मोर बदल गया है। जिस दिक्षा के चरबोंमें देव देवेन्द्र और नर नरेन्द्र अपना जमत शिर झुकाते थे, माज उसी दिक्षा के नामसे संसार क्षुब्ध उठा हैं, प्रसिद्ध पत्रोंमें कोलाहल मच रहा है । वात भी ठीक है कि याकनीवन का व्रत एक दो दिनमें या मास और वर्षमें ही समाप्त किया जाता हो उस दीक्षा पर कहां तक श्रद्धा रह सक्ती है ? दिशा का साधारण लक्षण काम, क्रोध, लोभ, लेश और अहम्पद त्यागने का है. वह आज दिन व दिन वड़ता नजर आता है; छानीबीपी इधर उधर भगा कर के दिखा देना तो आज हमारे धर्मगुरुओं का साधारण नियम हो चूका है । ईसी कारणसे जनता की दिक्षा परसे श्रद्धा उठती जा रही है, कितनेक लोग अपने अभिष्ट की सिद्धि के लिए पुगणे जमाने के अपवाद को भागे रख कर माता पितादि कुटुम्बियों की विगर ग्जा दिक्षा देने की हिमायती करते हैं। पर आज दुनिया सर्वथा अज्ञान नहीं है कि एक विशेष कारणसे अपवाद सेवन किया गया हो उसको सदैव के लिए विना कारण काममें जिया जाय यह शास्त्र सम्मत कब माना जा सकता है ? पुराणी बातों की अपेक्षा आज नजरसे देखो हुई बातों पर जनता अधिक विश्वास रखती है, अतःएव दिशा प्रकरणमें खास सुधारा होने की जरूरत है, अगर ऐसे ही अन्धाधुन्धी बनी रहेगी तो वह दिन नजदीक है कि जैसे मठ मण्डियोंमें रहनेवाले साधुनों की किम्मत है, उनसे अधिक किम्मत नहीं होगी। . - DIGK
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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