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क्षमा की याचना.
हमारें गुरुदेवों प्रति समाज की श्रद्धा
(१)
पूर्व जमाने में जैनाचार्य और मुनिमण्डल पर जैन समाज की यहां तक श्रद्धा थी कि उनके लिए प्यार प्राणों को निगवां कर देना कोई बात भी नहीं समझते थे, केवल जैन समाज ही नहीं पर साग संसार उन महर्षियों को वडे ही सनमान की दृष्टी से देखता था; इस का कारण उन का त्याग, वैराग्य और परोपकार ही था । भान हमारे गुरुदेवों पर सर्व जनिक वह श्रद्धा नहीं रही है पर उन की दृष्टीगमें फसा हुआ है वह ही । जी हाँ जी हाँ किया करना है तब दूसरे जैन श्रावक प्रसिद्ध पेपरोंमें हमारे पूज्याचार्य देवो को मनमाने शब्दों में तिरस्कार करे और उन को स्वपर मनवाले पढ़ कर के हांसी उड़ावे, यह कितनी शर्म की बात और समाज की कहां तक श्रद्धा कही जाय, मैं तो यही अर्ज करता हूँ कि अभी भी हमारे गुरुदेव अपनी उत्तमता पर खूब गहरी दृष्टिसे विचार करें और अपनी प्रवृति में जो त्रुटियों हैं उनको सुधार कर जैसी पूर्व जमादुनिया की श्रद्धा थी; वह पुन: जमाने का प्रयत्न करें तो अच्छा है।
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क्षमा की याचना ।
वीरशासन में आज भी त्यागी, वैरागी, निःस्पृही, उग्रविहारी, परोपकारी, सदाचारी और साहित्यप्रचार करनेवाले आचार्य और मुनिगण कि कमी नहीं है और उन महाशयों के पूर्ण परिश्रमले ही