________________
हमारे गुरुदेवों की दिक्षा पद्धति.
( १८१ )
है, हमरे उपदेश दातापूज्य गुरुदेवों को स्वयं विचार करना चाहिए कि अगर अन्त समय जीव उस कोश संग्रह की और चला जाय गा तो आपनी क्या हालत होगी ? गुरुदेव ! आप को संचय बढाने की क्या आवश्यक्ता है कारण आपश्रीमानों की सेवा में श्रीसंघ पग २ पर हाजिर है वह कहता है कि " साहिबजी ! अमने लाभ आपो, गुरुमहाराज अमने लाभ प्रापो, आप तित्राणं तारियाणं छो जब आप को जिस वस्तु की जरूरत हो उस वस्तु का लाभ श्री संघ को दो कि उन का भी कल्याण हो अगर आप वस्तु लेके ममत्व भाव से संग्रह करोगे तो आप को भी नुकशान है और उस नुकशान में सहायता देनेवाले गृहस्थों को भी फायदा नहीं है बास्ते पैटी पटार को छोड कर अप्रतिबन्ध हो भूमिपर विहार कर हमारे जैसे संसारी जीवों का कल्याण कर उस लाभ के संग्रह पर ध्यान दिया करें ।
"
हमारे गुरुदेवों की दिक्षा पद्धति
पूर्व जमाने में दिक्षा लेनेवालों को पहिले भगवती दिशा का स्वरूप और कष्टमय मुनि जीवन अच्छी तरहसे समजाया जाताथा, बाद योगायोग्य और बैराग्य की कसोटी पर खूब परिक्षा कर उनके कुटुम्बीयों की जाबंधी से ही दिखा दी जाती थी, और उन्ही मुनि पुङ्गवोंने जगदोद्धारक के साथ अपना कल्याण किया, पर आज तो