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(१०) जैन आति महोदय प्रकरण टा. पास के जैन वस्तीवाले गांवों में एकत्रित करते गये और मुसलमानों के अत्याचार के भयसे उन मूर्तियों को भूमिगृह में भी स्थान दिया तथापि आज जैन वस्ती के प्रमाणमें मूर्तियों इतनी अधिक हैं कि जिनकी सेवा पूजा होना भी मुश्किल हो गया। इतने पर भी दुःखका विषय यह है कि जो मूर्तियां श्री संघके कल्याण के लिए थी। आज वही हठीले वाणियों की सम्पति रूपमें परिणित हो गई है। एक माममें चाहें मूर्तियों की सेवा पुजा भी न होती हो अनेक पाशातनाएं होती हो पर दूसरे मन्दिर के लिए एक सर्व धातू की प्रतिमा देने में वे इतने हिचकते है कि न जाने उनकी सम्पति ही जाती हो इस स्वछन्दता के कारण हजारों मूर्तियों की आशातना होते हुए भी नई अजलसिलाकाए करानी पडती है और केई लोग तो ऐसे व्यापार ले बैठे है कि बिल्कुल नई मूर्तियों पर प्राचिन समय के सिलालेख खुदा कर बडी बडी किम्मत लेकर बिचारे भद्रिक लोगों को फंसा देते है जब पुर्व बंगाल और महाराष्ट्रीय देशोमें देखा जाय तो संख्याबद्ध प्राचीन जैन मूर्तियों की अत्यन्त बुरी हालतसे पाशातना हो रही है अतएव श्री संघको चाहिए कि पुराणी रूढियों के बंधन को छोड दें अगर जहां अधिक मूर्तियां हो और दूसरे गांव या मन्दिर में मूर्तियों की जरूरत हो तो विना सङ्कोच बडी खुसी के साथ प्रतिमानी देकर उनकी सेवा पुजामें निमीत्त कारण बन लाभ उठावे.