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जैन मूर्तियों.
(१५९) जहां दर्शन का साधन न हो वहां वस्तीके प्रमाण में मन्दिर या जिर्णोद्धार की अनिवार्य आवश्यकता है पर उनसे भी पूजारी बनाने की अत्यावश्यकता है और समाज अग्नेसर और धनाढ्य दानवीरों को उस तरफ अधिक लक्ष देना चाहिए.
(२०) जैन मूर्तियों
जैन मन्दिरों के साथ जैन मूर्तियों का घनिष्ट सम्बन्ध है जहां मन्दिरोंकी बाहुल्यता हो वहां मूर्तियों की विशालता होना स्वभाविक बात है हमारे आचार्य देव जहां जहां विहार करते थे वहां नए जैनी बनाकर के उनके सेवा भक्ती उपासना के लिए जैन मन्दिर मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा करवाया करते थे और वार वार उपदेश द्वारा उनका पोषण भी किया करते थे इसी कारणसे उन लोगों की जैन धर्म पर श्रद्धा दृढ रहा करती थी बाद चिरकाल तक हमारे मुनियों के विहार व उपदेश के प्रभाव भी जैन मन्दिरों के जरिये उन लोगों की जैन धर्म पर अटल श्रद्धा बनी रही थी पर हमारे मुनियों की लापर्वाही तो यहां तक हो गई थी कि उन लोगों की तरफ आंख उठा करके कभी देखा भी नहीं उनकी उपेक्षा का फल यह हुआ कि अन्य लोगों की संगत संस्कार और अत्याचार से आखिर लाचार हो उनकों जैन धर्म त्यागना पडा इधर काल की करता से केई ग्राम नगर बिलकुल उजड़ यानि जंगल हो गए इत्यादि कारणों . से जैन मूर्तिपूजकों की संख्या कम होती गई और वे मुत्तियों प्रास