SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 999
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५८) जैन जाति महोदय प्रकरण छठा. हाथ धर ही देते हैं जिसमें भी गोडवाड़ जैसी मशान जनता के लिए तो पूछना ही क्या ? जिस गांममें लाखों रूपैये खर्च के पुनः प्रतिष्टा करवाई पर उस मन्दिर को पूजनेवाले कितने श्रावक निकलेंगे ? बा. खिर तो वह पूजारियों के विश्वास पर मन्दिर छोड़ना पड़ता है, चाहे वे भक्ती करें चाहे आशावना। अगर कोई आंख उठा कर देखे कि उन अधम पूजारियोंने जैन मन्दिर मूर्तियों की कहां तक प्रा. शातना करी और कर रहे है और उन आशातनाओं से ही जैन समाज का पतन हुमा और होता जा रहा है। क्या हमारे धर्मप्रेमी इन पूजारियों की आशातना मिटाने का प्रबन्ध कर समाज को इस पाप से बचा सकेगा? हमारे सज्जनों को जितनी बोली बोलने का शोख है उतना मन्दिरजी की आशातना मिटाने का लक्ष नहीं है मगर पहिले से ही आशातना तरफ लक्ष दिया जाय तो पाशातनारूपी क्षय रोग को स्थान ही क्यों मिले ? जिस ग्राममें प्रतिष्टा के जीमणवार में हजारों रूपैये व्यय किए जाते हैं उन शेठ के बालबच्चों की शिक्षा के लिए न तो स्कूल है न जैन शिक्षा देनेवाला कोई मास्टर है न लड़कियों के लिए कोई कन्याशाला है न नवयुवकों के लिये लायब्रेरी है अगर कहीं पर होगा भी तो वह नाममात्र या बोर्ड देखने को, उनका फल कितना ? हम नए मंदिर और प्रतिष्टा के विरोधी नहीं हैं पर समय को देखना चाहिये. समाज को देखना चाहिए भविज्य का विचार करना चाहिए कि आज अपने शिर पर मन्दिरों के जिर्णोद्वार ज्ञानोद्धार समाजोद्वार की कितनी जोखमदारी है ? अतएव
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy