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________________ १९ के लिये बहुत प्रयत्न किया पर बीमारी ने भयंकर रूप धारण कर इस प्रकार आक्रमण किया कि वि० सं० १९४६ के चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की ८ के दिन रूपादेवी को इस संसार से विदा लेनी पड़ी । मूताजी की ३५ वर्ष की युवक अवस्था जिसमें भी दो छोटे बच्चों का पालन पोषण करना, मानो एक बड़ी भारी आफत भा पड़ी। फिर भी मुताजी कर्म सिद्धान्त के अच्छे ज्ञाता होने से हतोत्साही न होकर हिम्मत रखी और थोड़े ही दिनों में आपका दूसरा विवाह ग्राम सांगरिया में शाह जोरावरमलजी संखलेचा की सुपुत्री तीजाबाई के साथ हो गया। मुताजी के दूसरा विवाह कर लेने के बाद क्रमशः हस्तीमल, बस्तीमल तथा मिश्रीमल, गजराज आदि चार पुत्र और एक पुत्री का लाभ हुआ, जिसमें गजराज तथा यत्न कुंवरी का तो शिशु अवस्था में ही देहान्त हो गया । तथा गयवरचन्द, गणेशमल, हस्तीमल, बस्तीमल और मिश्रीमल आपके अन्त समय तक सेवा में विद्यमान थे । प्रसंगोपात इतना कहकर अब हम हमारे मूल विषय पर आते हैं कि हमारे चरित्र नायकजी शिशु अवस्था को इस प्रकार बिता रहे थे, जिसकी चमत्कार पूर्ण अनेक ऐसी घटनाएँ हैं जो आपके भविष्य की भाग्य रेखा का सहज ही में परिचय करा रही थी, जैसे आपके घर में साधु आर्या गोचरी आते थे तो आप उनके पात्र जबरन ले लेते थे । आपके मातु श्री जब व्याख्यान सुनने को पधारती तब श्राप भी साथ जाया करते थे । बचपन में ही श्रापकी बुद्धि इतनी शीघ्र गामिनी थी कि व्याख्यान में दृष्टान्तादि सुनते वे मकान पर आने के बाद ज्यों के त्यों सुना देते थे । जन्म
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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