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________________ आदर्श-ज्ञान ज्योतिष शास्त्र के जानकार पंडितों ने आपके जन्म समय को लेकर जन्म-पत्रिका बनाई जिसमें राज्य योग होना भी बतलाया था। जन्म, चन्द्र सूर्य दर्शन, रात्रि जागरण और एकादशवें दिन सूतक कर्म कर बारहवें दिन बड़े ही महोत्सव के साथ दान स्नान भोजनादि से सबका सम्मान करके स्वप्नानुसार आपका नाम 'गयवरचन्द' रखा। जबसे आपने अपने घरमें जन्म लिया सब कुटुम्बवाले विशेष सुख शान्ति अनुभव करने लगे। आपकी बाल क्रीड़ा से सबका चित्त प्रसन्न था, आपकी तोतली बाणी सबको मनोरंजन एवं कर्णप्रिय लगती थी। बाल्यावस्था से ही आप सर्व प्रिय थे, आपका नियमय सरल व्यवहार सबको रुचिकारक था। ___ मूताजी नवलमलजी साहब कई सुविधाओं के कारण वि० सं० १९४० में बनाड़ को छोड़ बीसलपुर आकर अपना निवास स्थान बनाया, इसी वर्ष आपको दूसरे पुत्र का लाभ हुआ अर्थात् वि० सं० १९४० के भादवा मास में शुक्ल पक्ष की ११ को रूपादेवी ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया, और खूब आनन्द पूर्वक दूसरे पुत्र का नाम गणेशमल रखा । मुत्ताजी के दोनों पुत्र जय विजय की तरह वृद्धि पाते रहे और आप सकुटुम्ब बड़े हो अानन्द में संसार निर्गमन कर रहे थे, पर इस कलिकाल के ईर्षा का भी पार नहीं है। इस दुःखमयआरे में सर्वसुखी जोवन कुदरत से देखा नहीं गया, उसकी एक क्रूर दृष्टि मुताजी के खान-दान की ओर पड़ी। दो पुत्रों की सौभाग्यवती माता रूपादेवीजी के शरीर में साधारण सी बीमारी हुई, उसके इलाज
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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