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आपका दम्पत्ति-जीवन बड़ा ही सुख और शान्तिमय व्यतीत होता था। एक समय का जिक्र है कि आप अपने पतिदेव की शैय्यामें आनन्द में सो रही थी, मध्यगत्रि में आपने स्वप्न में एक प्रधान हस्ती देखा बाद में जागृत हुई श्रीर स्वप्नको ज्यों का त्यों याद किया तो मारे हर्ष के सब शरीर फूल उठा। ___रूपादेवीजी ने अपने पतिदेव को जगाकर स्वप्न की सब बात कही तो मुताजी परमानन्द को प्राप्त हो मधुर बचनों से अपनी धर्म पत्नी से कहने लगे कि, हे देवी ! आपके चिरकालके मनोरथ सिद्ध हो गये क्योंकि अपने कुल में एक भाग्यशाली पुत्रान जन्म लेगा। इत्यादि । इस संवाद को सुनकर रूपादेवी को विशेष आनन्द हुआ।
रूपादेवी नियमानुसार गर्भ का पालन करने लगी इधर मुत्ताजी के घर में चारों ओर से लाभ का समुद्र उमड़ पाया। गर्भ के प्रभाव से देवीजी को अच्छे अच्छे दोहले ( मनोरथ ) पाते थे जिनको मुताजी ने सहर्ष पूर्ण किये। ____वि. सं. १९३७ की विजयदशमी की रात्रि को मध्य भाग में महादेवी रूपादे ने एक पुत्र रत्नको जन्म दिया। यह समाचार सुनते ही अखिल कुटुम्ब के अन्दर हर्ष की बरसात होने लगी। जब बीसलपुर से यह शुभ समाचार मुताजी के वहाँ बनाड़ पहुँचा तो हर्ष का कोई पार नहीं रहा। कहा भी है कि"रण जीतन तोरण बंधन, पुत्र जन्म उत्साह । तीनों अवसर दान के, कौन रंक कौन राव" ।
चारों ओर मंगल गीत गायन होने लगे, याचकों को दान तथा जैन मन्दिरों में स्नात्र पूजा पढ़ाई जाने लगी।