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________________ १५ जन्म इन कहावतों से भी यही सिद्ध होता है कि पूर्व जमाने में बनाड़ एक बड़ा शहर था । शायद जोधपुर बसने के बाद ही इस नगर ने ग्राम का रूप धारण किया हो । वि. सं. १६७१ में मेहताजी जोरावर सिंहजी ने खेरवा से आकर बनाड़ को आपका निवास स्थान बनाया, उस समय बनाड़ में केवल महाजनों के ५०० घर अच्छे आबाद थे । बनाड़ एक व्यापार का केन्द्र था । बालदियों के बालदों और ऊँटों की कतारों द्वारा यहां लाखों रुपयों का माल आता जाता था । यही कारण था कि वहां के व्यापारी महाजन तन धन से बढ़े ही समृद्धिशाली थे । ऊपर बतलाया गया है कि - मुत्ताजी जीतमलजी साहब के तीन पुत्र थे - ( १ ) भूरमलजी, ( २ ) जोधराजजी, (३) मुलतानमलजी यहां तक तो आपका पेशा राज्य कर्मचारीत्व का ही था। आपके वंश परम्परासे ही दीवान बक्सी हाकिमादिपद पर काम करते आये थे, परन्तु मुताजी ने भविष्य को सोच कर तीनों पुत्रों को पृथक् २ कार्य्य में नियुक्त कर दिये, जैसे कि - (१) भूरमलजी को राजकर्मचारीपन का कार्य्यं । ( २ ) जोधराजजी को जागीरदारों के लेन देन और व्या पार के कार्य में । (३) मुलतानमलजी को दिशावर में दुकान करनेकी आज्ञादी, जिन्होंने नासिक परगने के कौचर ग्राम में जाकर दुकान करदी | इस प्रकार तीनों भाइयों के अलग २ काम होने पर भी श्रायव्यय का हिसाब शामिल ही था । क्योंकि उन तीनों भ्राताओं में अच्छा प्रेम स्नेह था ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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