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________________ वंश परिचय नामा बड़े ही विस्तार से लिखा है, जिसकी एक नकल मैंने भी उतार ली थी, उसमें से यहां पर केवल नामावली ही देता हूँ:(१) लालोः-वि. सं. ११६९ में ओसियाँ से गढ़ शिवाणे आया, ११८१ में श्री शत्रुजय का संघ निकाल संघने सोना मोहरों की पहरामणी दी आप को १२०१में चित्तौड़ के महाराणा ने वैद्य पदवी प्रदान की थी। (२) मांमणः (३) जैतसी:-गढ़ शिवाने में महावीर का मन्दिर बनाया। (४) धरमसी:-आपके पुत्र नागदेव ने आचार्य देवगुप्तसूहि . | के पास दीक्षा ली। (५) सुलतानसिंहः-सर्व तीर्थों की यात्रा की, जिसमें एक | करोड़ द्रव्य व्यय किया। (६) कुशलसिंह-गढ़ शिवाने में पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया । (७) भूपतसिंहः-आचार्य सिद्ध सूरि के उपदेश से भूपतिसिंह के | पुत्र रामा ने आचार्य श्री के पास दीक्षा ली थी। (८) मोहनसिंहः (९) काल्हणसिंहः (१०)जगतसिंहः-शिखरजी की यात्रार्थ संघ निकाल कर | पूर्व के सर्व तीर्थों की यात्राकी, उद्यापनादि
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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